सुलगते शब्द - कविता - श्याम निर्मोही

सुलगते हैं शब्द,
धूं-धूं कर जलते हैं शब्द।

दबे हुए आक्रोश को बाहर लाने के लिए, 
अपने खोए स्वाभिमान को पाने के लिए,
भटकते हैं शब्द।
सुलगते हैं शब्द...

सड़कों पर उथल-पुथल मचाने के लिए,
वंचितों को अधिकार दिलाने के लिए,
मचलते हैं शब्द।
सुलगते हैं शब्द....

सदियों का संताप उत्पीड़न मिटाने के लिए, 
अस्पृश्यता, विषमता, घृणा मिटाने के लिए,
बरसते हैं शब्द।
सुलगते हैं शब्द...

वैचारिक कूपमंडूकता से बाहर लाने के लिए, 
शिक्षा, संगठन, संघर्ष के मायने बताने के लिए,
उमड़ते हैं शब्द।
सुलगते हैं शब्द...

विप्लव की मशाले फिर से जलाने के लिए, 
'निर्मोही' सोए हुए समाज को जगाने के लिए,
गरजते हैं शब्द।
सुलगते हैं शब्द....

श्याम निर्मोही - बीकानेर (राजस्थान)

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