राजस्थान कहाया हूँ - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध

राजस्थानी पानी का पत, रखना अपनी पूजा है।
सरफरोश को छोड़ न कोई, धंधा अपना दूजा है।
गंगा-जमुना की गोदी में, रहने वाले क्या जाने-
मरुथल में पानी बिन पानी, राजस्थान अजूबा है।
अपने सीने पर भारत का, नक्शा स्वयं बनाया हूँ।
पानी पर शोणित बरसाकर, राजस्थान कहाया हूँ।।

मेरे आँगन में प्रताप ने, अकबर को ललकारा था।
राणा साँगा के घावों पर, युद्धक्षेत्र भी वारा था।
काम-तृषा में आतुर दुश्मन, जब पानी की ओर बढ़ा-
तब पद्मिनियों ने जौहर कर, अपना नाम सँवारा था।
तृष्णा की मैं कठिन वेदना, प्राय: सहता आया हूँ।
पानी पर शोणित बरसाकर, राजस्थान कहाया हूँ।।

प्यास नहीं होने देंगे कम, धनुष बाण तलवारों की।
धर्म, भूमि की रक्षा ख़ातिर, चेतक पवन सवारों की।
वन पर्वत रणभूमि महल में, चम्पा ही चम्पा दिखती-
जलकर जिसने क्षुधा अग्नि में, चुनी मृत्यु सरदारों की।
मृगमरीचिका के चक्कर में, बस तुषार ही पाया हूँ।
पानी पर शोणित बरसाकर, राजस्थान कहाया हूँ।।

पन्ना के चंदन को पाकर, प्यास बुझी बनबीरों की।
पर पन्ना ने प्यास  बुझाई, माँ कहलाकर वीरों की।
झालामन्ना भी प्यासा था, राणा के रक्षार्थ मगर-
बन प्रताप अमरत्व पा गया, नमन ‘अवध‘ रणधीरों की।
गोरा बादल तक्षक वीरन को आवाज़ लगाया हूँ।
पानी पर शोणित बरसाकर, राजस्थान कहाया हूँ।।

 डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

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