होली रंग गुलाल - कविता - विकाश बैनीवाल

गुलाबी गुलाल लगाए,
हाथ जो भी लग जाए।
गुड़िया के लगा रंग,
देखो मुन्ना खूब हर्षाए।

प्रफुल्लीत हुए तन-मन,
आज दिल बड़ा प्रसन्न।
झाँझर चमके गोरी के,
बंगड़ी बजे खन्न-खन्न।

ओ यारों की टोली सजी,
लगी महफ़िल की अर्ज़ी।
भाँग पीकर मस्ती हुए है,
चलाते सब अपनी मर्ज़ी।

पिचकारी फव्वार चली,
रंगो-रंग हुई गली-गली।
घर लौट आए अब सब,
जब दोपहर-शाम ढली।

दरवाज़े की कुंडी खोली है,
जो दिखी सूरत भोली है।
अरे लगा गुलाल भागकर,
यार बुरा न मान होली है।

विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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