ऐ समय!
तू थकता नहीं क्या?
तेरे साथ चलते-चलते,
मैं थक गया, बैठ गया।
पर, तू है कि चलता बना।।
ऐ समय!
तुझे पसीना नहीं आता क्या?
तेरा पीछा करते-करते,
मैं पसीने से तर हो गया।
थोड़ी देर जो बैठा, वहीं सो गया, पर तू चलता बना।।
ऐ समय!
तुझे जाडों में ठण्ड नहीं लगती क्या?
मैं इन बर्फीली राहों पर,
चलते-चलते ठण्ड से ठिठुर गया।
तू है कि, रुकने का नाम नहीं, तनातन चलता बना।।
ऐ समय!
तनिक ठहर भी लेगा, तो क्या बिगड़ जाएगा तेरा?
मैं मानता हूँ कि तू चलायमान है,
बता, इंसान को पीछे छोड़ क्यों तू चलता बना?
राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)