होली तिरंग नभ छाते हैं - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

होली का त्यौहार अनूठा,
कोई जग में रहे न रूठा।
भेद भाव मन ऊँच नीच का,
रंग नशा में खो जाते हैं। 

पैगाम शान्ति समरसता का,
रंग गुलाल त्यौहार अनोखा,
भारत संघी राष्ट्र एकता,
जाति धर्म बिन सब मिलते हैं।

अपनापन मन भाव सहजता,
सम्मान अपर रख मानवता,
प्रीति मीत बन सद्भावन जग,
होली रंगों में घुलते हैं।

हरित भरित भू शस्य श्यामला, 
सतरंगी फागुन मदमाता,
मुकुलित चारु तरु रसाल का,
पंचम स्वर कोकिल गाते हैं। 

नील गगन घनश्याम बरसता,
पिचकारी से रंग निकलता,
पुरुष नारी बाल युवा जरा,
रंगों में रंजित पाते हैं।

उल्लास हृदय महकें खुशियाँ,
पकवान मधुर बनती गुजियाँ,
रसपान भाँग सब मत्त नशा,
जोगीरा सर रर गाते हैं।

बहुरंग किन्तु मन रंग मिला,
मुख दीन दुखी मुस्कान खिला,
वे दर्द भूल बन रंगीला,
नवभोर रंग खो जाते हैं। 

होली मतलब सब साथ मिलें,
परमार्थ साथ पुरुषार्थ बनें,
सौहार्द्र शील मन क्षमा दया,
समुदार हृदय रंग जाते हैं। 

होली रंगों में घुला मिला,
निर्मेष प्रीत नवनीत बना,
सम्मान शक्ति नित मन नारी,
फागुन रंगों में छाते हैं।  

वतन होली दूँ शुभकामना,
सर्वसुख हो हितकर भावना,
शान्ति मान सुयश सुखी दुनिया,
होली तिरंग नभ छाते हैं।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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