जल संरक्षण - गीत - संजय राजभर "समित"

नीर है तो कल है कल-कल बचा ले। 
बूँद-बूँद ही सही पल-पल बचा ले।। 

जलचर आज विलुप्तता के जाल में,
चले जा रहे हैं काल के गाल में।
अब पट गए हैं ताल तलैया कुएँ,
डिब्बे बंद नीर भला कैसे पिएँ?

रिसे न अब टोंटियाँ नल-नल बचा ले। 
बूँद-बूँद ही सही पल-पल बचा ले।।

गाँव उजड़ रहे हैं जल की खोज में,
हो रहे आबाद शहर किस ओज में?
अनदेखा हुई तो मँहगा पड़ेगा,
तड़प कर बिन पानी मरना पड़ेगा।

धरा की पीड़ा उथल-पथल बचा ले। 
बूँद-बूँद ही सही पल-पल बचा ले।।

प्रवासी पंछियाँ अब नही गाँव में, 
नही शीतलता पीपल की छाँव में।
सीख रहें अब कहाँ बच्चे तैरना!
सीख रहें कतार से वो जल भरना। 

सूख न जाए जड़ वो कमल बचा ले। 
बूँद-बूँद ही सही पल-पल बचा ले।।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos