अपनी भाषा अपनी होली,
मिलें मनाएँ समरस होली।
रंगों की पिचकारी भरकर,
आओ खेलें हम रंगोली।
आई फागुन की फुनगाई,
तरुणाई ने ली अंगराई।
प्रेम रंग से तन मन रंजित,
बनी नशीली होली आई।
रूमानियत रंगों की होली,
मदमाते प्रेमी हमजोली।
सतरंग आश मधुमास प्रीत,
मधुर मिलन सजनी हर्षाई।
घृणा द्वेष छल मिथ्या कामी,
विविध होलिका आग जलाई।
मधुरंग प्रेम रंजित जनमन,
सद्भावन होली फिर आई।
हमराही जीवन की होली,
भाव समादर मधुरिम बोली।
जाति धर्म भाषा संस्कृति मिल
मानवता रस होली लाई।
नशा फगुनिया रंग गुलाली,
रंगरसिया जनता मुस्कायी।
नीति रीति पथ एक भाव मन,
राष्ट्र एकता भाव जगाई।
शान्ति सुखद वैभव रस घोली,
अपनापन रंगों की होली।
सर्वप्रगति सब मिल पौरुष बल,
रंगी परहित होली आई।
समरूपी सामाजिक होली,
नार्यशक्ति सम्मानक होली।
विविध रंग मिल एक संघ दिल,
केशर हरित धवल मन भाई।
चहुँ विकास प्रतिमानक होली,
युवजन मन नव चाहत होली।
जरा युवा उन्मुक्त बालपन,
खुशियों की मधुशाला लाई।
भक्ति प्रीति रसगागर होली,
सत्य विजय प्रतिमानक होली।
जन गण मन अधिनायक पावन,
रंगमहल मनभावन छाई।
शौर्य विजय प्रतिमानक होली,
गायन समरसता मन होली।
आतंक पाप गद्दार वतन,
दावानल में सभी जलाई।
अस्मित मुख रंगों की होली,
दो जीवन बस देश भलाई।
आदिकाल वसुधा कुटुम्ब मन,
रंगों की होली बन आई।
राधा माधव खेले होली,
गाए फागुन मिल सब गोपी।
रंगरसिया ब्रजवासी मधुर,
मोहन मुरली राग बजाई।
चढ़ी भाँग की नशा रंगोली,
बहुविध व्यंजन गुजिया आई।
गुलाब जामुन रसरंग मुदित,
जोगीरा धुन धूम मचाई।
झूमें तन मन नयी नवेली,
चारु सजन सह बन हमजोली।
उद्दाम प्रीति रतिराग ज्वलित,
रंगी सजनी तनु अंग लजाई।
रमा रमण रमणीया होली,
निर्भेदित सब सुखदा होली।
त्याग शील गुण कर्म समन्वित,
न्याय नीति सम ज्योति जलाई।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली