है अबोध यह बालपन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

है अबोध यह बालपन, निश्छल निर्मल चित्त।
चपल प्रकृति कोमल सरल, मधुर स्नेह आवृत्त।।१।।

खेलकूद कौतुक सहज, भावुक मन उद्गार।
मेधावी नित अनुकरण, कौतूहल आचार।।२।।

मनमौज़ी नित बालपन, लोक नीति अनजान।
गंगाजल पावन प्रकृति, अधर कुसुम मुस्कान।।३।।

राग द्वेष मन छल कपट, नहीं चित्त दुर्भाव।
नवकिसलय पादप मृदुल, मुक्त सकल मन घाव।।४।।

कुम्भकार घट मृत्तिका, होते बाल गोपाल।
नित अबोध ढल साँच में, चारु सुपात्र कपाल।।५।।

मातु पिता परिवार में, शिक्षण बाल अबोध।
संस्कार जीवन मिले, सीखें नित नव शोध।।६।।

जीवन के अनज़ान पथ, रहे बाल ख़ुशहाल।
सुखद सुरभि महके चमन, स्नेहाचिंत हो बाल।।७।।

ग्रसित बाल है दीनता, पतझड़ मुख मुस्कान।
भूख प्यास छत वसन बिन, दफ़न बाल अरमान।।८।।

अवहेलित नित बालपन, दीन हीन मन भाव।
नीति प्रीति शिक्षा विरत, मिले मजूरी घाव।।९।।

लखि निकुंज दुख बालपन, विरत बाल आनंद।
पुनः सजायें बाग हम, खिले बाल मकरंद।।१०।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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