वीणा पाणि नमन चरणों में - गीत - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल"

वीणा पाणि नमन चरणों में, माँ स्वीकार करो।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो।

आओ माँ इस हृदय कमल पर, आसन लो मन पावन कर दो।
झुलसा तन अज्ञान ऊष्णता, कृपा वृष्टि कर सावन कर दो।।

माँ मुझको दो शब्द सम्पदा, हृदय ज्ञान की ज्योति जला दो।
हृदय सरोवर में भावों के, अनगिन कमल प्रसून खिला दो।।

जग में व्याप्त ईर्ष्या हिंसा, स्वार्थ विकार हरो।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो।।

माँ तेरा होना शुभ सूचक, ध्यान सदा फलदायक।
तेरी भक्ति सदा सुखकारी, मंगल की परिचायक।।

बहे भाव की नव निर्झरणी, शुभम विचार जगें।
द्वेष, कपट, छल, दंभ, अमंगल, मन से दूर भगें।।

पद कमलों में शीश धरूँ माँ, पाणि पसार धरो।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो।।

नवल भाव की जग कल्याणी, कविता सरस बहे।
गीत, छंद, नवगीत, सवैया, नित-नित कण्ठ कहे।।

भाव बोध रस अलंकार मिल, शब्द शक्तियाँ शैली।
रचें अनूठे छंद भावना, पनपे नहीं विषैली।।

माँ! तुम दो वरदान निरन्तर, बन उपहार झरो।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो।।

श्याम सुन्दर श्रीवास्तव "कोमल" - लहार, भिण्ड (मध्यप्रदेश)

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