संवाद - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

चम्पा और कनेर में, क्या होता संवाद।
बैठ पेड़ पिक कूकता, काक करे अनुनाद।।१।।

सही नीति सह सोच हो, मानस बिन उन्माद। 
सदा विनत चल लक्ष्य पथ, मधुरिम हो संवाद।।२।।

रीति नीति मिट्टी पलित, संस्कार अवसाद।
अधर विमुख मुस्कान हो, स्वार्थ परत संवाद।।३।।

चहुँदिश पसरी चीख है, बिदक रहा अवसाद। 
दवा धीर संवेदना, देकर हित संवाद।।४।।

पावन अनुपम अयोध्या, सिया राम संवाद।
दीप जले मुस्कान सुख, मिटे सकल अवसाद।।५।।

दीन धनी हर गेह में, जले खुशी के दीप।
रहें प्रेम मिल साथ में, हों संवाद महीप।।६।।

निर्मल मानस निष्कलुष, पौरुष हो संवाद।
निखरे निज व्यक्तित्व भी, मिटे अपर अवसाद।।७।।

छल प्रपंच मिथ्या छली, विरत बने संवाद।
शेष हृदय सम्मान जग, देशभक्ति हिय नाद।।८।।

संवेदन हो आपदा, परसुख मन आह्लाद।
प्रेरक सच संवाद हो, मानक बिना विवाद।।९।।

धीर शील गंभीरता, लोक लाज रक्षार्थ।
शान्त सरल संवाद हो, पालन हो धर्मार्थ।।१०।।

मृदुल सुधा समरस विमल, दिलकश मन संवाद।
रिश्ते बनते हैं मधुर, देते हैं सब दाद।।११।।

शान्ति संधि संवाद से, मिटे सकल मन वैर।
दृढ़ता दे विश्वास को, कोई नहीं हो गैर।।१२।।

समरस सद्भावन मुदित, नीति संवाद।
मनभावन खुशियाँ अमन, गूंजे यश अनुनाद।।१३।।

मिटे सकल बाधा विपद, हो निकुंज गुलज़ार।
बने मीत संवाद मृदु, प्रगति सुखद शृङ्गार।।१४।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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