विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)
सुबह सवेरा - कविता - विनय विश्वा
शुक्रवार, जनवरी 01, 2021
सुबह सवेरा
हुआ सुनहरा
चिड़िया गाती
मेरे अँगना
सुबह सवेरा
हुआ सुनहरा।
कल-कल करती
नदियाँ बहती
उत्तर से है
मलय बयार ये चलती
कल-कल करती
नदियाँ बहती।
भौंरे भी है गुन-गुन गाते
खेतों में है
फ़सलें लहराते
मेड़ों पे है खड़े किसान
अपने भविष्य को है निहारते।
गुन-गुन है भौंरे गाते।
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