सांसारिक आकर्षण - कविता - प्रवीन "पथिक"

ज़िन्दगी में,
बहुत-सी चीजें
मिलती हैं ऐसी जो
अपने उन्मदित व्यवहार से
आकर्षित कर
निज-राहों से,
सन्यासियों की भाँति
मंज़िल की तलाश में
दर-दर भटकाना
जानती हैं।
जो उक्त कला में पूर्ण अभ्यस्त;
मुग्धकारी-मूरत के सामने
नर्तन की क्रियाएं,
कराना जानती हैं।
ऐसा ही
सेमल का पेड़,
जो अपने बाह्य-आकृति
व लंबी काया से युक्त;
हरितिमा लिए,
कुसुमों का श्रृंगार किए;
हरित-वसना युक्त,
जड़वत-उन्मुक्त;
पुष्पों के ललित मुखमंडल पर इतराता।
संसार को विचित्र सौंदर्य पर,
मुग्ध करवाता।
वास्तविकता से परे,
रंगीनियों में लेे जाता।
ऐसी ही और रंगीनियाॅं,
मनुष्य के आँखों के सामने
प्रमुदित-भाव लिए उपस्थित होती हैं।
निज सौंदर्यता साबित करती हैं
प्रभावशाली ढंग से।
यथावत
उसी सेमल के पुष्प-सा,
जिसके सौंदर्यता को देख
अंदाज़ा नहीं जा सकता।
भले ही!
वह कितना भी व्यर्थ-सा लगता हो।
पता नहीं!
क्यों करती हैं ये पथ-विचलित?
और भी कई सौंदर्यता के पीछे,
बड़ी रहस्यमयी,
बड़ी लुभावनी बातें सामने आती।
जो,
मनुष्य के दृढ़-निश्चय को,
डिगा सकती है।
मोड़ सकती है उसे,
कुपथ्य की ओर जहाँ
बुराई के कई रास्ते,
खुलते हैं एक-साथ
जो
दुखद ऐतिहासिक दृश्य के साथ
उपस्थित 
दिखाई देते हैं।।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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