नये मौसम के बीज - कविता - वरुण "विमला"

बीज के साथ
दबा देता है अपने गम
साथ हुये अत्याचार
अपनी ख़्वाहिशें।


बस उगाता है
जठराग्नि को शांत करने की औषधि
छटाई कर देता है
शेष पनपे पौधों की।


उसके रगो में घुलती है मिट्टी
साँसों में है फसलों का आना जाना
जब छीनी जाती हैं
इनसे इनकी साँसें
तब बदलता है फसलों का स्वरूप।


एक नये मौसम को लिये
नये बीजों के साथ
उगता है तुम्हारी सत्ता पर।


वरुण "विमला" - बस्ती (उत्तर प्रदेश)


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