पशेमाँ है खुदाई भी,
भुला बैठे भलाई भी।
जमाना हो गया पत्थर,
नयन में है रुलाई भी।
बयाँ करना जरूरी है,
किसी में है बुराई भी।
अगर है रात भर जगना,
करें हम अब सुलाई भी।
खरीदें हम यहाँ कुछ गर,
दिया हमने ढुलाई भी।
जफा जो लोग करते हैं,
तड़पती हैं वफाई भी।
तवा-चूल्हा सगा है गर,
सगी है तो कढ़ाई भी।।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)