मेरे दादा का कहना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

मेरे दादा कहते
थे कि बेटा
पहले का जमाना
बडा सस्ता था।
एक रुपये में
पाँच किलो घी
एक मन गेंहू
और कुछ
पैसों में ढ़ेर सारी
जलेबी बर्फी
आती थी।
मैंने उत्सुकता से 
पूछा दादा
सस्ता होने
पर भी
आज की तरह
स्टेन्डर, शान,
शौकत, आन-
बान कहा थी?
मेरी बात सुन
दादा के मस्तिष्क
पर बल पड़े
और उपेक्षित
मन से खूब हँसे
फिर गहरी सांस
लेकर बोले
बेटा तूने कभी
कागज के फूल 
देखें है।
उनके कहने का
प्रत्युत्तर् में
समझ चुका था
दादा की हँसी
और उनके
भावों के उतार-चढ़ाव
से मेरे मन के
उठे सारे सवालो के
जवाब जो मिलने
लगे।
क्योकि उनकी
हँसी में कटू सत्य
छिपा था जो
झुठलाया नहीं
जा सकता था।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos