मुहब्बत सिखा गया - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

लो  देखते  ही देखते  नशा -सा छा गया
अनजान कोई आज मुहब्बत सिखा गया।

मायूसियों ने होंठ न खुलने दिए कभी
वो गीत बनके खुद को मगर गुनगुना गया।

अहसास की तपन में जिसे ढूँढते थे हम
भूला हुआ -सा मीत हमें याद आ गया।

वो पंखुड़ी गुलाब की रह -रहके कह रही
गुलफ़ाम बन के मीत मुकद्दर सजा गया।

उसके करम की बारिशें कुछ इस तरह हुई
सपना थी जिंदगी, वो हक़ीक़त बना गया।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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