अदला बदली - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध

सुबह जगाने  आता सूरज, 
शाम  सुलाने  आता चंदा।
गर अदला-बदली हो जाए,
झूम - झूमकर गाए बंदा।।

पता नहीं सूरज को निश दिन,
इतनी  सुबह  जगाता कौन?
दिन भर  गायब रहता चंदा,
ठीक शाम  को  लाता कौन?

कोई  पता  बता  दे उसका,
जो  इनको  ड्यूटी  देता है।
क्या ये नहीं बगावत करते?
या तो  वो  क्रूर विजेता है?

थोड़ा मिलते अधिक बिछड़ते,
अजब गजब जीवन के चक्के।
एक  बात  लेकिन  सच्ची है,
दोनों  हैं  ड्यूटी  के   पक्के।।

दोनों  की  अपनी ड्यूटी है,
दोनों  के  हैं  अपने  काम।
हम  भी  इनके  साथ रहेंगे,
अवध हमेशा आठों याम।।

डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

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