ज्ञान चक्षु ने भ्रम उधेरा।
जब जागो तभी सवेरा।।
आच्छादित थे घन कुहरे
दिशाहीन थे भव लहरे,
अब लहरों पर है डेरा।
जब जागो तभी सवेरा।।
उम्र कोई बात नही है
चेतन में रात नही है,
राज पटल पर उकेरा ।
जब जागो तभी सवेरा।।
सीख झाँक कर अतीत में
आगे सफर कर प्रीत में,
अनुभव है एक चितेरा,
जब जागो तभी सवेरा।
लोभ मोह में क्षोभ भरा
अवगुंठन में रार भरा,
संतोष में है बसेरा
जब जागो तभी सवेरा।
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)