पर हृदय विचलित रहता है
यूँ तो कोई रहता है खामोश
पर मन में आँसुओं की धारा बहती है.....!!
बढ़ने लगता है मन में
नकारात्मक भाव जब
थमते नहीं आँखों से आँसुओं की धारा
तब शरीर जिंदा लाश बन जाता है......!!
जब हार जाता है यह मन हमारा
तब मौत को गले लगाना चाहता है
फिर जैसे झूठी आस लेके जीते हैं
आखिर में वही हमारी अवसाद बन जाता है.......!!
तोड़ कर सारे बंधन
वह अपनी और हमें खींच लेता है
पकड़ कर हमारे मन को
फिर हमें मौत को सौंप देता है.......!!
मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)