वे लम्हें कितने प्यारे थे - गीत - प्रवीन "पथिक"

वे लम्हें कितने प्यारे थे!
           मिलने की बस आँखो की ललक थी।
           हज़ारों  मिलन  की  एक झलक थी।
           रहते जैसे साथ साथ चाँद सितारे थे;
वैसे एक दूजे के सहारे थे।
वे लम्हें कितने.....
           ख़ूबसूरत सा हर पल लगता था।
           आँखों  में  प्रेमदीप  जलता था।
           ज़माने की उलझी नीतियों से;
हम विरक्त संसृति के किनारे थे।
वे लम्हें कितने.....
            न  था जगत  से कोई  वास्ता।
           थी एक मंज़िल, था एक रास्ता।
            हम  निज  भाग्य पर इठलाते;
पर! दुनिया के नज़र में गवांरे थे।
वे लम्हें कितने.....
             नहीं था किसी से बैर भाव।
             जीवन में किसी का अभाव।
             हर  दिन  बस  यही लगता;
देखते हम टूटते तारे थे।
वे लम्हें कितने.....


प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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