वतन के लिए - कविता - नूरफातिमा खातून "नूरी"

है जान निसार वतन के लिए,
सर झुकाए हैं नमन के लिए।

गरीबों  का  सहारा  बनो,
सबकी आंखों का तारा बनो।

सब छोड़ देंगे अमन के लिए,
है जान निसार वतन के लिए।

सीमा पर देश के लिए लड़ता है वीर,
मौसम  की मार  सहता  है वीर।

लेखनी चलायेंगें उस रतन के लिए,
है जान  निसार वतन  के लिए।

घुट -घुट  के  क्या  जीना है,
कहीं मौज कहीं सफ़ीना है।

कुछ वक्त निकालें भजन के लिए,
है  जान  निसार  वतन  के लिए।।

नूरफातिमा खातून "नूरी" - कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

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