फ़ना होके भी तेरा आवाज देना - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला

वो उजड़ा चमन याद आता रहा है ।
सुहाना समा दिल जलाता रहा है ।

सुलगती शमा सा फ़क़त दिल ये मेरा ।
पिघलता पिघलता जलाता रहा है ।

ये घायल सी साँसे ये बेचैन आँखें ।
हर इक रोज मुझको चुकाता रहा है ।

ये रूहों की चादर में जख्मो के मोती ।
जनाज़ा हमारा सजाता रहा है ।

राहे मोह्हबत को माना इबादत ।
ये रस्मे वफ़ा दिल निभाता रहा है ।

कभी तो मिलेगा वो हमरूह मेरा ।
यही दिल दिलासा दिलाता रहा है ।

फ़ना होके भी तेरा आवाज़ देना ।
अश्कों मे, सुष, को डुबाता रहा  है ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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