चीनी रोटी खाया
फिर भी सपने बड़े-बड़े वो,
मन में अपने सजाया।
बंद पड़े चूल्हे को देख वो,
अपनी भूख मिटाया
जाकर सोया बिछावन पर वो,
पर नींद उसे ना आया।
सारा दिन खेलता रहता वो,
आराम उसे ना भाया
नमक-तेल मिला रोटी में वो,
बड़ी चाव से खाया।
निर्वस्त्र होकर नदी में वो,
घंटों यू ही नहाया
खेत-खलिहान में दोस्तों को वो,
दौड़-दौड़ खूब घुमाया।
गाँव के बच्चों से रोज-रोज वो,
झगड़ा करके आया
ऎसा कोई दिन नहीं जिस दिन वो,
पिता से डाँट न खाया।
भूख लगने पर जा दुकान में वो,
चूड़ा उठाकर खाया
कैसे हो कुछ पैसे जेब में वो,
खूब दिमाग लगाया।
जामुन और जलेबी बेच वो,
पैसा कुछ ले आया
उन पैसों से ही कुछ दिनों तक वो,
लिट्ट-समोसा खाया।
न हो पैसे जेब में भले फिर भी वो,
दिल का अमीर कहलाया
छोटी-छोटी खुशियों से ही वो,
अपने दिल को बहलाया।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)