अधिकारों की बातें - कविता - सलिल सरोज

मैं
जब जब 
अपने हक़ की बातें करूँगी 
तुम
तब तब
अपनी बातों से मुकर जाया करोगे

मैं जिद्द करूँगी
तुम गुस्सा हो जाओगे
मैं गुस्सा करूँगी
तुम और गुस्सा हो जाओगे
मैं और गुस्सा करूँगी
तुम हाथ उठाने पे आ जाओगे
मैं अपनी आवाज़ उठाऊँगी
तुम मेरे बदन पे शोर मचाओगे
और
फिर मैं गिड़गिड़ाऊँगी 
फिर तुम खुश हो जाओगे
अपनी दम्भ का पताका भी फहराओगे

और
फिर रात में
जब मेरे जिस्म से तुम खेलोगे
फिर मुझे पुचकारोगे
और 
गहरी आँहें भरकर बोलोगे
"तुम अपने अधिकारों की बातें क्यों नहीं करती?"

सलिल सरोज - मुखर्जी नगर (नई दिल्ली)

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