तसव्वुर - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

तुम्हीं हर वक़्त तसव्वुर में बसे हो जैसे ।
बनके मुस्कान इन होंठों पे रचे हो जैसे ।।

बिन तेरे ज़िंदगी अधूरी- अधूरी मेरी,
बाँधे दामन में उम्मीदों को रखे हो जैसे ।।

ज़िंदगी की किताब महक़ी पन्ना-पन्ना है,
पन्ने-पन्ने में बनके प्यार सजे हो जैसे ।।

मैं अँधेरों में लम्हा-लम्हा कट रहा था बस,
चाँदनी बन मेरे पहलू में बिखरे हो जैसे ।।

हर घड़ी बस यही अहसास ख़ुशी देता है,
मेरे सीने से तुम आकर के लगे हो जैसे ।।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos