बात न जाने - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

कँहा गयी वो बात न जाने।
बिगड़े क्यों हालात न जाने।

ठीक- ठाक लगता था सब कुछ
बदले क्यों जज़्बात न जाने

आज जीत के दरवाज़े पर
घूम रही क्यों मात न जाने

बादल छाये भी, गरजे भी
रूठी क्यों बरसात न जाने

मन्नत   और  मुरादों   के  हैं 
क्यों ढुल-मुल अनुपात न जाने

मंजिल की देहरी पर जाकर
बिछुड़ी क्यों बारात न जाने

साथ नींद का छोड़ दिया है 
पगलाई क्यों रात न जाने।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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