आओ जानें नागपञ्चमी क्यों मनाई जाती है - लघुकथा - अतुल पाठक "धैर्य"

हमारे धार्मिक सनातन देश में  प्राचीनकाल से ही नागपूजा की परम्परा चली आ रही है। हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पञ्चमी के दिन नागपञ्चमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इसे नागपञ्चमी के नाम से जाना जाता है।
यह नागमाता और हलधर से जुड़ी एक लघुकहानी है जिसके माध्यम से इस पर्व को मनाने के पीछे छुपे कारण को बताया गया है।

एक समय की बात है लीलाधर नाम का एक हलधर रहता था। जिसके तीन बेटे और एक बेटी थी। एकदिन सुबह-सुबह जब हलधर अपने खेत में हल चला रहा था तब उसके हल से नागमाता के बच्चों की मौत हो गई। अपने बच्चों की मौत को देख नागमाता को अत्यधिक क्रोध आया। क्रोधित नागमाता अपने बच्चों की मौत का प्रतिशोध लेने हलधर के घर पहुँची। देर रात जब हलधर और उसका परिवार गहरी नींद में सो रहा था तब उसी क्षण नागमाता ने हलधर , उसकी पत्नी और उसके दो बेटों को डस लिया। जिससे उनकी मौके पर ही भयानक मौत गई। हलधर की बेटी को नागिन ने नहीं डसा था। जिससे वह ज़िन्दा बच गई।

दूसरे दिन जब सुबह के समय नागमाता फिर से हलधर के घर हलधर की बेटी को डसने के इरादे से पहुँची तो उसने नागमाता को प्रसन्न करने के लिए कटोरा भरकर दूध रख दिया। बेटी ने विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना माँगी और परिवार जनों के लिए भी सहृदय सादर क्षमायाचना की। 

बेटी की अन्तर्मन संवेदना के आगे नागमाता का क्रोध भी हार गया। नागमाता बेटी की सच्ची संवेदना से प्रसन्न हो गई। नागमाता ने सबको जीवनदान दिया। इसके अलावा नागमाता ने यह आशीर्वाद भी दिया कि श्रावण शुक्ल पञ्चमी के दिन जो महिला नाग-नागिन की पूजा अर्चना  करेगी उसके बाली बच्चे और समस्त परिवार सदैव सुरक्षित रहेंगे।

अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

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