गुरु ज्ञान का आहार दे - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

प्रलय भी  निर्माण भी,
हैं गोद जिसकी पल रहे।

शिक्षक  प्रणेता राष्ट्र का ,
कर्तव्य पर यदि दृढ़  रहे।

यदि विमुख है गुरु धर्म से ,
तो घोर पातक  पात्र  है।

पर व्यर्थ अपमानित हुआ,
तो  पतन की  शुरुआत है।

ज्यौं  पिंड मिट्टी का उठा,
बर्तन बना  कुम्हार दे।

त्यौं  बीज रूपी  शिष्य को,
गुरु  ज्ञान का आहार दे।

गोविंद से भी प्रथम क्यों ,
गुरु वन्दना का नियम है।

गुरु दिखाता मार्ग प्रभु का ,
सब  दूर  करता भरम है।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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