सदा मुस्काने वाले तुम भला चुपचाप बैठे हो।।
कि आते-जाते रहते हैं ख़ुशी और ग़म सदा यूँ ही,
ये क्या बच्चों सी अश्क़ों की लिए बरसात बैठे हो।।
खिंज़ाओ में बहारों सा जिओ तारीफ़ तब होगी,
ये क्या घायल हुए अपने लिए ज़ज़्बात बैठे हो।।
उम्मीदों के सितारे बाँध रखना अपने दामन में,
नाउम्मीदी में गुज़रे क्यों लिए वो रात बैठे हो।।
फ़लक़ के ख़्वाब न देखो ज़मी पर ज़िंदगी अपनी,
हँसो जीभर के क्यों ग़म के लिए हालात बैठे हो।।
प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)