कभी सफर ये सुहाना है ।
इस सफर को हंस कर जो काट गया,
जिंदगी को उसी ने जाना है ।।
कभी लगती ये बहार है ,
कभी लगती ये उजाड़ है ।
कभी खुशियों का मैदान है ,
कभी मुश्किलों का पहाड़ है ।
समतल मैदान हों या ऊँचे पहाड़ हों ,
हमें तो आगे बढ़ते जाना है ।
कभी हर तरफ खामोशी है ,
कभी गीतों की बौछार है ।
कभी मिलती है नफरत हमें ,
कभी मिलता प्यार ही प्यार है ।
खामोश रहकर भी हमनें अब ,
गीत एक नया सुनाना है ।
कभी इसमें दुःख अपार हैं ,
कभी सुखों का भंडार है ।
कभी सब कुछ खाली - खाली है ,
कभी भरा - पूरा संसार है ।
जिंदगी के खालीपन को खुशियों के ,
रंगों से भरते जाना है ।
कभी जुदाई की गजल है ,
कभी उल्फत का तराना है ।
इंसान को खुशी - उल्फत देकर,
"पँवार" अपना धर्म निभाना है ।
इस धर्म को सच में जो निभा गया,
जिंदगी को उसी ने जाना है ।
समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)