सहरा - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

होंटों पे अपने प्यास की शिद्दत लिए हुए।
सहरा में आया आब की हसरत लिए हुए।

कुछ ख़ास दोस्तों की बदौलत विदा हुए,
दिल मे हज़ार ज़ख़्मों की नेअमत लिए हुए।

नफ़रत का अंधेरा भी क़ायम रहेगा क्या,
कब से खड़ा हूँ शम्म-ए-उल्फ़त लिए हुए।

अपनी नहीं है फ़िक्र बस औरों की फ़िक्र है।
गुज़री है जिंदगी यही आदत लिए हुए।

तलवार थी, न तीर, न खंजर था हाथ में,
मैदान में डटा रहा हिम्मत लिए हुए।

जन्नत मेरी हुई जो किया पार पुल-सिरात
क्योंकि मैं था ईमान की दौलत लिए हुए।

शब्दार्थ:
पुल-सिरात - धार्मिक मान्यता अनुसार वो पुल जिसको पार करने के बाद ही स्वर्ग का दरवाजा होगा, और उसे सिर्फ वही पार कर पायेगा जो ईश्वर को मानने वाला और ईमान पर कायम होगा)

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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