बरखा रानी - कविता - अतुल पाठक

बरखा रानी बड़ी सुहानी
बहुत समय बाद आई हो

धरती के मुरझे अधरों पर
सावन का अमृत लाई हो

जन मानुष पशु पक्षी के 
तपते जलते व्याकुल मन

बिन बरसात के सूखे थे
खेत खलिहान और जंगल वन

आओ मिलकर झूला झूलें
पेंग बढ़ाकर नभ को छूलें

बरखा रानी लाई है
मीठी मीठी मधुर फुहारें

दादुर मोर पपीहा सब
मिलकर गाते गीत मल्हारें

बाग बगीचों को महकाने
बरखा रानी आई है

प्रकृति के सुंदर कुसुम खिलाने
इस धरती पर आई है

अतुल पाठक - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

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