मानो उसने सब कुछ पाया,
दिव्य ज्ञान पा जीवन निर्मल,
ममता समता निच्छल छाया।
महातिमिर फँस जीवन मानव,
ज्ञानविरत जग बनता दानव,
गुरु आलोकित ज्ञानपूंज नर,
मति विवेक परहित मन काया।
सत्य सुमंगल परब्रह्म जगत् ,
रवि शशि किरणों से ज्योतिप्रखर,
शरणागत हरि गुरु चरण कमल,
ज्योतिर्मय जग गुरु की माया।
नित महापुण्य गुरु मान जगत,
भर ज्ञान सुधा मतिहीन मनुज,
बन्दहुँ सरसिज गुरु चरण सतत् ,
हरे सकल शोक रोग विपदा।
सुर सरिता सम पावन निर्मल,
गुरु ज्ञान सलिल अवगाहन कर,
जग नीति प्रीति आधार सकल,
ज्ञानविरत मानव भरमाया।
गुरुकृपा पात्र हो हरिदर्शन,
गुरु नाम श्रेष्ठ जप मन पावन,
आशीष प्राप्त गुरुधाम विमल,
भवसागर मोचक गुरु साया।
मकरन्द खिले गुरु ज्ञान कुसुम,
गुरुसेवन भक्ति यश मान मनुज,
आनंद मनसि हो ध्येय सफल,
सुखधाम मनुज पा गुरु छाया।
नवरंग सजे गुरु इन्द्रधनुष,
मँझधार बने पतवार सरित,
मातु पिता गुरु नरश्रेष्ठ जगत्
मिटे लोभ छल सत् गुरु पाया।
अहंकार मद मोह मनुज हृदय,
उषाकाल नत पा गुरु अरुणिम,
नव प्रगति ज्ञान पथ यायावर,
हो सफल शीश गुरु का साया।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली