कुछ बातें - कविता - नीना श्रीवास्तव

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब उठी होगी उँची लहरें,
समंदर के बीच उठें भंवर में,
क्या क्या तबाह हुआ होगा।

कुछ तो बातें रही ही होंगी,
जब शाखों से गिरे पते होंगें,
गिरें सूखे पतों में भी अलग,
होनें के दर्द शाखों को हुये होंगें।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब गंगा यमुना नदियों का,
मिलन हो संगम कहलाई होगी,
संगम बन सबकों अपनें में तुम,
मन भर स्नान कराई होंगी।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब सुनी लम्बी सड़कों पर,
कतार में चलतें अपनों संग,
मंजिल तय करनें की ज़िद,
नंगे पाव ,भूखें पेट चल पड़ें होगें।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब घर के गली चौबरें में,
शहनाइयाँ बज उठी होंगीं,
मिलन की रात सजाई होंगीं।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब खिलौनों से भरा पड़ा,
सजा धजा सा कमरा होगा,
बच्चें की किलकारियाँ गूँजी होंगीं।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब हम तुम मिलन की,
चाह दिलों में संजोये होंगें,
साथ निभानें के कसमें खाये होंगें।

कुछ तो बातें रही होंगीं,
जब तुम दोस्ती का हाथ,
बढ़ाये मुझसे मिलें होगें,
फिर किस बात से तुम खफ़ा ,
होकर नाते रिश्तें तोड़ चलें गये।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
जब आज भी तेरा इंतजार,
सुबहों शाम किया करती हूँ,
मिलन की आस तो तुम भी,
अपनें दिलों में जगाये होगें।

कुछ तो बातें रही ही होंगीं,
तुझ से दोस्ती को दिल मचला होगा,
कुछ तेरी अदा में हमनें भी,
कुछ मेरी अदा में तुम भी फिदा हुये होगें।

नीना श्रीवास्तव - (झारखण्ड)

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