जनहित याचिका क्या है ? भारत के न्यायपालिका में उसका योगदान - लेख - मनिष विनोद खडकबाण


हम भारतवासी भारत के संविधान को भारत के आत्मा के रूप से जानते है। भारतीय संविधान ने भारतवासियो को  अनुच्छेद १२ से अनुच्छेद ३५ तक मौलिक अधिकार प्रदान किये है। ईन अधिकारो की मदद से भारत का हर नागरिक अपनी सहिष्णुता और स्वतंत्रता की रक्षा करने हेतू उपयोग करता है। संविधान के ईन मौलिक अधिकारो को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। संविधान में ईन मौलिक अधिकारो का प्रावधान भाग -३ मे अनुच्छेद १२ से अनुच्छेद ३५ तक है। मूल संविधान में सम्पत्ति का अधिकार मिलाकर कूल सात  मौलिक अधिकार थे लेकिन ४४ वे संविधान संशोधन में सम्पत्ति के मौलिक अधिकार को संविधान की मौलिक अधिकारो की सूची से हटाकर अनुच्छेद ३०० (अ ) के तहत कानूनी अधिकार के रूप में डाला गया।

अभी संविधान में कूल ६ मौलिक अधिकार है।
मौलिक अधिकार अनुच्छेद:
समता या समानता का अधिकार
अनुच्छेद १४ से अनुच्छेद १८

स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद १९ से अनुच्छेद २२

शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद २३ से अनुच्छेद २४

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद २५ से अनुच्छेद २८

संस्कृति और शिक्षा संबधी अधिकार
अनुच्छेद २९ से अनुच्छेद ३०

तथा संवैधानिक अधिकार
अनुच्छेद ३२ से अनुच्छेद ३५ तक प्रावधान है

राष्ट्रीय आपात काल में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को छोड़ सभी मौलिक अधिकारो को स्थगित करने का प्रावधान संविधान में दिया गया है। संविधान मे दिये गये ईन मौलिक अधिकारो का हनन हो रहा है तो हाईकोर्ट और देश का सर्वो-उच्चतम न्यायालय सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अधिकारो की रक्षा की गुहार लगाई जा सकती है। हाईकोर्ट में अनुच्छेद – २२६ के तहत याचिका दायर कर सकते है और सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद ३२ के तहत याचिका दायर की जा सकती है।

क्या है जनहित याचिका ?
अगर किसी आदमी के मौलिक अधिकारो का हनन हो रहा है तो उसे निजी यानि पर्सनल इंटरेस्ट लिटिगेशन दाखल करने का अधिकार संविधान देता है उसे पर्सनल इंटरेस्ट लिटिगेशन माना जायेगा , और जनहित याचिका दाखल करने वाले इंसान को अदालत को यह बताना होगा की कैसे उस मामले में आम लोगो का हित प्रभावित हो रहा है। दायर की याचिका सही है या नही इसका फैसला कोर्ट ही करता है। इसमे सरकार या जिनके खिलाफ यह याचिका दाखल की गयी है उस अधिकार समिती को प्रतिवादी माना जाता है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट प्रतिवादी को उचित निर्देश देती है यदि वह दोषी साबित हो जाये।

ईस तरह दाखिल कर सकते है याचिका
लेटर के द्वारा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा सकती है। लेटर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के नाम से लिखा जाता है। अगर अदालत को लगता है कि ये जनहित से जुड़ा मामला है तो लेटर को ही पीआईएल के तौर पर लिया जाता है और सुनवाई होती है। लेटर में बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी लेटर के साथ लगा सकते हैं। लेटर जनहित याचिका में तब्दील होने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है। अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट मुहैया कराती है। हाईकोर्ट चीफ जस्टिस के नाम भी लेटर लिखा जा सकता है।
दूसरा तरीका ये है कि वकील के जरिए जनहित याचिका दायर की जा सकती है। वकील याचिका तैयार करने में मदद करता है। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्रॉफ्ट किया जाएगा, इन बातों के लिए वकील की मदद जरूरी है। पीआईएल दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करना होता है। लेकिन, जिस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती है उस वकील को उचित फी देनी पडती है। जनहित याचिका ऑनलाइन दाखल नहीं की जा सकती है।

तीसरे तरीके में खुद कोर्ट अपने सज्ञान से जनहित याचिका दाखल कर सकता है। मतलब अगर मीडिया में जनहित के खिलाफ कोई खबर छपती है तो सुप्रीम कोर्ट  या हाई कोर्ट उस पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार यानि प्रतिवादी को जवाब पूछती है और खुद जनहित याचिका चला सकती है।

फीस बढ़ाने की स्कूलो की मनमानी पर रोक
दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखल की गयी और निजी स्कूलो द्वरा फीस बढ़ाने में मनमानी करने पर रोक की मांग की गयी। न्यायालया ने १९९८ में अपना निर्णय दिया जिसमे कह गया की स्कूलो को व्यवसाय का जरिया नहीं बनाया जा सकता है। लेकिन २००९ में स्कूलो ने यह कहकर फीस बढ़ा दी की छठे वेतन आयोग की शिफ़ारिशों के अनुसार ऐसा करना बाध्य है लेकिन कोर्ट ने बाध्यता की जाच के लिये जस्टिस अनिल देव समिति का गठन किया। समिति ने अपने जच मे २०० स्कूलो की जच की उन्ह में से ६४ स्कूलो की फीस बढ़ाने में मनमानी थी | उन्हे फीस वापस करने की शिफारिश की गयी थी। जनहित याचिका का यह अतुल्य उदारहण है।

बचपन बचाओ आंदोलन की बड़ी पहल
जनवरी २००९ में भुवन नामक कार्यकर्ता ने जनवरी २००९ में दिल्ली उच्च न्यायालया में  याचिका दायर कर प्लेसमेंट एजंसियों द्वरा काम दिलाने के नाम पर बच्चो और औरोतों की तस्करी पर रोक लगाने की मांग की थी तब कोर्ट ने यह बात उजागर की थी की सरकार ने ऐसी समितियों पर अंकुश लगाने के लिये अभी तक कोई कानून नहीं बनाया है। ईस मामले के तहत प्लेसमेंट संस्थाओ को केंद्र सरकार के श्रम विभाग के तहत पंजीयन करने की व्यवस्था बनी थी। ईसप्रकार भारतीय संविधान ने जनहित याचिका दाखल करने का सुनहरा अधिकार अपने भारतीय नागरिकों को दिया है।

लेकिन , बीते दिनों में हाई कोर्ट में बढ़ती याचिकों की संख्या के चलते और फर्जी याचिका के चलते हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करना अब आसान नहीं होगा। याचिका दाखिल करते समय वादियों को यह बताना होगा कि समस्या की शिकायत दूर करने के लिए इसके पहले कहां शिकायत की गई थी। शिकायत कब की गई थी और शिकायत के बाद संबंधित विभाग ने क्या जानकारी दी या कार्रवाई की है। बिना इसकी जानकारी के जनहित याचिकाएं स्वीकार नहीं की जाएंगी ऐसे निर्देश कोर्ट ने दिये है


मनिष विनोद खडकबाण
खादक्बन वाड़ा, मुरबाद (महाराष्ट्र)

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