वैसे तो यारों सच दिखलाना,
काम मीडिया का होता।
मगर आजकल चाटुकारिता वश,
फ़र्ज भुला वह भी देता ।
सही चीज को तोड़ मोड़ कर,
दिखलाने से मीत डरो ।
तुम समाज के खैर ख्वाह हो,
दुश्मन जैसा नही करो ।
वैसे तो ये कलयुग है,
नामुमकिन कुछ कर्म नही।
सत्य बात को ही दिखलाओ,
सुनो ,मीडिया धर्म ,यही ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला