मीडिया धर्म - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला


वैसे तो यारों सच दिखलाना,

काम  मीडिया  का होता।

मगर आजकल चाटुकारिता वश,

फ़र्ज भुला वह भी देता ।

सही चीज को तोड़ मोड़ कर,

दिखलाने से मीत डरो ।

तुम समाज के खैर ख्वाह हो,

दुश्मन  जैसा नही करो ।

वैसे  तो ये  कलयुग  है,

नामुमकिन कुछ कर्म नही।

सत्य बात को ही दिखलाओ,

सुनो  ,मीडिया धर्म ,यही ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

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