हिंद की उल्फत - कविता - जितेन्द्र कुमार


तेरे रग-रग में  बहे  गंगा,
तुम्हारे हाथ में है तिरंगा|
तीनों रंग में रंगकर  तुम
बना दो भारतवर्ष जन्नत
यही है हिंद की उल्फ़त|

तुम्हारी है एक पहचान,
तुम हो भरत की संतान|
जय हिंद बोल बढ़े चलो
हिला दो धरा की परत,
यही है हिंद की उल्फ़त|

कुर्बान होना है तेरा कर्म,
सिद्ध करो  अब स्वधर्म|
तुम दीप हो, जलते  रहो
फ़ना होने  से   डरो  मत
यही है हिंद की उल्फ़त|

गवाह है भारत-इतिहास,
वतन को न मिला न्यास|
यह तरतीब अब तोड़ दो
पुकार रहे हैं शहीद भगत,
यही है हिंद की उल्फ़त|

खुशहाल रहें हिंद हरदम,
एक होकर बढ़ाओ कदम|
तुम प्रवीर हो, आगे बढ़ो
पुकार रहा है विंध्य पर्वत,
यही है हिंद की उल्फ़त|

जितेन्द्र कुमार

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos