हवा - कविता - रमन कुमार श्रीवास्तव


मैंने तुम्हें पतंगों को आसमानों में उछालते देखा,
और पक्षियों को मैंने आसमान में उड़ाते देखा,
और मैं सुनता हूँ तुम्हे चारो ओर से गुजरते हुए
जैसे खेतों में हरा-भरा फसलों को लहलाते हुए ।
ओ हवाँ तुम तो सारा दिन बहती हो
ओ हवा जो इतना तेज गाना गाती हो
मैने तुम्हे भिन्न-भिन्न कार्य को करते देखा है।
परन्तु सदैव तुमने स्वंय को छुपाया हैं
मैने तुम्हारा धक्का अनुभव किया है
मैने तुम्हारी हमेशा पुकार सुनी है
पर कभी किसी ने भी , तुम्हें देख नहीं पाया है।

रमन कुमार श्रीवास्तव

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