प्यार को प्यार समझ करके, प्यार कर बैठे
अपने हाथों से अपने, दिल पे वार कर बैठे
हमने सोचा था एक दिन तो मिलेंगे वो हमसे
इसी आरजू में हम तो , जीते जी ही मर बैठे
दाव पर हमने लगाया था, चैन नींद ओ सुकून
बेखबर वो रहे और हम सब निसार कर बैठे
खुदा समझ के जिन्हें पूजा वो निकले पत्थर
उसी पत्थर पे ये शीशे का दिल हार कर बैठे
कवि कुमार निर्दोष