चलो आज सितारों से बात करते हैं
भूलकर नफ़रत बहारों से बात करते हैं।
बहुत दिन हुए मन के सितार छुए
चलो आज झंकारों से बात करते हैं ।
चिरागों तले बसते हैं अक्सर अंधेरे
बैठकर आज अंधेरों से बात करते हैं।
नफरतों की सांकल है दरवाजों पर
खोलकर घुंडी द्वारों से बात करते हैं ।
गुर्बत में चले आए चंद सिक्कों के वास्ते
भूखे मर रहे बेचारों से बात करते हैं।
बंद करो बांटना मजहब के नाम पर
चलो आज ठेकेदारों से बात करते हैं।
अशोक योगी शास्त्रीकालबा नारनौल