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विधा/विषय "बूढ़ी"
वो बुढ़िया - कविता - सलिल सरोज
शनिवार, अक्टूबर 10, 2020
वो बुढ़िया कल भी अकेली थी, वो बुढ़िया अब भी अकेली है। चेहरे की झुर्रियाँ पढ़ कर पता चलता है, उसने कितने सदियों की पीड़ा झेली है। पति छोड़ …
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