द्रोणाचार्य का ब्लूज़ - सुरेन्द्र जिन्सी

द्रोण बैठे थे
लॉस एंजिल्स के एक डाइव बार में
जहाँ बियर की टैप लाइन में
अभी भी पांडवों के ख़ून का स्वाद था
उन्होंने बारटेंडर से कहा—
"मुझे व्हिस्की दो, पर ऐसी 
जिसमें मेरी शिक्षा पद्धति की गंध हो"

एकलव्य ने कोने में बैठकर
अपने कटे हुआ अंगूठे से
ग्लास पर ख़ून के अक्षर लिखे—
"यहाँ प्रवेश के लिए जाति प्रमाणपत्र अनिवार्य है"

एकलव्य ―"सुनो गुरुजी,
तुम्हारे अर्जुन ने
कल रात मेरी प्रेमिका को
अपने रथ में घसीट लिया"

(द्रोण हँसकर)

"वह तो उसका क्षत्रिय धर्म था
तुम्हारी प्रेमिका के पास
कोई रक्षा-कवच नहीं था न?"

(एकलव्य बार काउंटर पर
अपना धनुष रखते हुए)

"यही मेरा कवच था
जिसे तुमने
मेरे हाथ से
मेरी ही उँगलियों से काट दिया"

(द्रोण ने ऑर्डर दिया)

"मुझे वो स्पेशल ड्रिंक दो
जिसे पीकर अर्जुन
कुरुक्षेत्र में मारता था
घोड़ों और बच्चों को"

(एकलव्य ने अपना ग्लास उठाया)

"मुझे वो घटिया बियर दो
जो पीकर मैं रोज़
अपने अंगूठे के घाव को
नमकीन बना सकूँ"

बारटेंडर ने पूछा: – "क्रेडिट या कैश?"
 
(द्रोण ने एकलव्य की तरफ़ देखा)

"इस आदिवासी के बिल पर
मेरा राजस्व विभाग भुगतान करेगा"

(एकलव्य द्रोण का कॉलर पकड़ते हुए)

"सुनो बूढ़े,
तुम्हारे ये धर्म-शास्त्र
मेरे जंगल में
टॉयलेट पेपर से ज़्यादा काम के नहीं"

(द्रोण ने सिगरेट सुलगाई)

"तुम ग़लत जंगल में पैदा हुए थे बेटा
अगर तुम मेरी गोद में खेले होते
तो आज तुम्हारी मूर्ति
हर मंदिर में होती"

एकलव्य ने बार के शीशे पर
अपने ख़ून से लिखा—
"यहाँ हीरो वही बनता है
जिसके पापों को
संस्कृत में लिखा जा सके"

(द्रोण ने एकलव्य के कंधे पर हाथ रखा)

"सुन लो नीलांगी,
अगले जन्म में
मैं तुम्हारे गाँव में जन्म लूँगा
तब तुम मेरा अंगूठा काटना
और मैं तुमसे पूछूँगा—
"क्या तुम्हारा आदिवासी होना
मेरे ब्राह्मण होने से ज़्यादा दर्दनाक है?"

(एकलव्य ने आख़िरी घूँट पीया)

"नहीं गुरुजी, सिर्फ़ इतना ही—
तुम्हारा ब्राह्मण होना
तुम्हारा सबसे बड़ा दुःख था
और मेरा आदिवासी होना
तुम्हारा सबसे बड़ा डर"

― सुरेन्द्र जिन्सी

नोट : यह कविता पौराणिक पात्रों को आधुनिक अमेरिकी डाइव बार में फेंक देती है, जहाँ वे अपने ट्रॉमा को शराब और गाली-गलौज से धोने की कोशिश करते हैं। यहाँ कोई सलीकेदार अंत नहीं, सिर्फ़ एक गंदी लड़ाई है जो बार बंद होने तक चलती है।

ब्लूज़ : एक ऐसा गीत जो प्रायः विलापपूर्ण होता है, जिसमें सामान्यतः 12-बार वाक्यांश, 3-पंक्ति वाले छंद होते हैं जिनमें दूसरी पंक्ति के शब्द आमतौर पर पहली पंक्ति के शब्दों को दोहराते हैं, तथा धुन और सामंजस्य में नीले स्वरों की निरंतर उपस्थिति होती है।

सुरेन्द्र जिन्सी - नई दिल्ली (दिल्ली)

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