अभिषेक शुक्ल - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)
मानसिक ग़ुलामी - आलेख - अभिषेक शुक्ल
गुरुवार, अगस्त 15, 2024
स्वतंत्रता का मतलब केवल दासता की बेड़ियाँ तोड़ना ही नहीं अपितु जो हमारे विचार पाखंड की ज़ंजीरों से जकड़े हुए हैं, उनसे मुक्त होना भी है।
स्वतंत्रता के दशकों पश्चात् भी क्या हमनें कभी विचार किया कि क्या हम सब वैचारिक रूप से भी स्वतंत्र हैं? अगर नहीं तो शायद हम सब स्वतंत्र होकर भी मानसिक ग़ुलामी में जी रहे हैं। यही मानसिक ग़ुलामी इस बदलते युग में पिछड़ जाने का कारण भी है।
भारत माता का आज़ादी के अमृत रस से अभिषेक करने वाले हमारे देश के तमाम उन महापुरूषों, स्वतंत्रता सेनानियों ने सर्वप्रथम अपनी इसी मानसिक ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने का कार्य किया, जिसके बल बूते आज हम सब इस स्वतंत्रता के उत्सव को मनाते हैं।
इस बदलते युग की यही माँग है कि हम सब भी महापुरूषों द्वारा निर्मित उसी लीक का अनुसरण करें जिसका ध्येय ही मानसिक ग़ुलामी को जड़ से उखाड़ फेंकना है।
मानसिक ग़ुलामी से मुक्ति का मतलब अपने विकास के मार्ग पर अग्रसर होना है।
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