खोजने चला वजूद अपनी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

खोजने चला वजूद अपनी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Hindi Kavita - Khojne Chala Vajud Apni. Hindi Poem On Existence. वजूद पर हिंदी कविता
यायावर उड़न चला हूँ मैं, 
खोजने चला वजूद अपनी, 
अनादि अनन्त व्योम क्षितिज में, 
अकेला निरापद निर्विकार, 
कुछ शेष अन्तर्मन जिजीविषा, 
समेटे सबसे पृथक् कुछ विरल, 
ऐसा जो बने चिरकाल तक, 
स्मृतिपटल एक नई सोच का, 
हो नया पैग़ाम नवयुग का, 
अचूक संदेशक दिग्दर्शक, 
प्रेरक नवयुवक का प्रतिफलक 
अनुकरणीय सच अवसाद शून्य, 
कुछ नया गुज़रने का जज़्बा, 
सुनहरा नवयुग का निर्माणक, 
ध्येय बस, ज़िंदगी में राष्ट्रप्रेम, 
सम्मान, समर्पण राष्ट्र क्षेम, 
जिसने दी है जगह व ज़मीं, 
जन्म से चिता में समाने तक, 
रख नीव मेरे वजूद अनवरत, 
स्नेहिल सिंचित किया पल्लवित, 
तन मन पुष्पित व सुरभित किया, 
कुछ अलग अनोखा बेमिशाल, 
जो बने नूतन भविष्य के लिए, 
मानडण्ड मर्यादित मील पत्थर। 
ऋणी हूँ मातृभूमि का आजीवन, 
अनजान हूँ मैं उस राह से, 
जिस पर चल पड़ा हूँ बेधड़क, 
अकेला, पर हूँ ख़ुद विश्वस्त, 
ले कुछ नए कर गुज़रने की सोच, 
सिद्धि फलाफल से विरत सुपथ, 
संघर्षरत समीपस्थ या नवागन्तुक, 
झंझावातों या विकट कण्टक, 
होंगे समक्ष आलोचक निन्दक, 
समुद्यत हतोत्साहनार्थ प्रतिपल, 
अनाहत दुर्गम कर्म अग्रसर, 
नियत, पर ख़ुद से अज्ञान जो मंज़िल, 
खोजने चला वजूद अंबर, 
उन्मुक्त उड़ानें भरता हूँ।


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