मानव जीवन चिर प्रगति, ग्रन्थ सनातन वेद।
ज्ञान कर्म परहित जगत, शान्ति प्रेम संवेद॥
ज़िम्मेदारी सभी की, जन भारत उत्थान।
प्रगतिशील आगम समय, नवयौवन संज्ञान॥
परमारथ पौरुष सबल, बने प्रगति वरदान।
नीति प्रीति सच न्याय पथ, वही मनुज इंसान॥
लोभ मोह मद कोप छल, घृणा द्वेष हैवान।
बाधक बनते नित प्रगति, दानवीय शैतान॥
बनें ताज शुभ प्रगति पथ, रचें ख्याति अरमान।
मिले समादर जगत में, हो भविष्य प्रतिमान॥
कृषिप्रधान भारत प्रगति, साधन है तालाब।
सिंचन खेती गाँव में, फ़सलें लाजबाब॥
मानवता चहुँ मुख प्रगति, नैतिकता उत्थान।
राष्ट्र प्रगति प्रमुदित प्रजा, प्रगति सोच इन्सान॥
प्रगति सुपथ नित बालपन, शिक्षा अनुसंधान।
नव तकनीकी नव प्रगति, हो किसान विज्ञान॥
न्याय त्याग सत् आचरण, मिले साथ भगवान।
सदाचार संस्कार से, मिले प्रगति सद्ज्ञान॥
बढ़े भक्ति सद्भाव मन, त्याग साधना प्रीत।
सभी सुखी चहुँ मुख प्रगति, समझ वेद की रीत॥