भाग्य से मिलती है बेटी,
हर नर के ऊँचे भाग कहाँ।
जिस आँगन भी यह फूल खिला,
करती है लक्ष्मी वास वहाँ।
बिन बेटी घर-आँगन सूना,
घर-आँगन की शान यही है।
हैं इसमे ही प्राण जगत के,
बिन इसके संसार नहीं है।
बेटों के सम पालो पोसो,
मन माफिक इसको उड़ने दो।
क़ैद करो न घर के भीतर,
सम्पूर्ण जग से जुड़ने दो।
पढ़ लिखकर आगे बढ़ने दो,
हर घर को रोशन करने दो।
मत मारो, आने से पहले,
हर घर मे इसको पलने दो।
समझो, बेटी बोझ नहीं है,
वह अपना भाग्य लाई है।
क्यों मानव, उससे प्रेम नहीं?
वह तेरी ही तो जाई है।
धन दौलत इसको ख़ूब मिले,
मन में ऐसे भाव नहीं है।
हो अनिष्ठ फिर अपनों का ही,
ऐसे इसके ख़्वाब नहीं है।
मात-पिता से प्रेम बहुत है,
भाई से कुछ होड़ नहीं है।
अपने सब रह जाएँ पीछे,
ऐसी इसकी दौड़ नहीं है।