ज़ुल्म सहते हो क्यूँ? - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला

ज़ुल्म सहते हो क्यूँ? - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला | Nazm - Zulm Sahte Ho Kyoon - Sushma Dixit Shukla | ज़ुल्म पर नज़्म
ज़ुल्म सहते हो क्यूँ, ज़ुल्म सहते हो क्यूँ?
क्या तुम्हे बोलने की इजाज़त नहीं?
ये अँधेरा घना है मगर जान लो
देर तक इसकी रहती हुकूमत नहीं
ज़ुल्म सहना भी तो एक अभिशाप है
ज़ुल्म में साथ देना भी इक पाप है
हाँ में हाँ ना करो ज़ुल्म में तुम कभी
बेबसी को गले से लगाओ नहीं
यार अंदर ही अंदर घुटो तुम नहीं
हौसले रूह के तुम जगाओ सही
वरना ऐसे ही इक दिन बिखर जाओगे
रूह को यूँ जलाकर के पछताओगे
गर सम्भलने लगे तो निखर जाओगे
एक दिन फिर ग़मो से उबर जाओगे
फिर उठोगे चलोगे सम्भल जाओगे
फिर हँसोगे खिलोगे सिहर जाओगे
ज़ुल्म सहते हो क्यूँ, ज़ुल्म सहते हो क्यूँ?
क्या तुम्हें बोलने की इजाज़त नहीं?
ये अँधेरा घना है मगर जान लो
देर तक रहती इसकी हुकूमत नहीं


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