अरकान : मुफा़ईलुन मुफा़ईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 122
किसी की ज़िन्दगी क़ायम नहीं है,
मगर जो आज है हरदम नहीं है।
किसी से पूछिए पिछली कहानी,
बताओ क्या किसी को ग़म नहीं है।
नतीजा है उसी की रहमतों का,
मिली है ज़िन्दगी ये कम नहीं है।
हुए हैं लोग अब मग़रूर कितने,
मुहब्बत का कहीं आलम नहीं है।
न बहती प्यार की सरिता ह्रदय में,
दिलों में प्रेम की सरगम नहीं है।
जो लाए औरों के जीवन में ख़ुशियाँ,
किसी में आज वो दम-ख़म नहीं है।
बढ़ाएँ जोश, जज़्बा और साहस,
तसल्ली दे कोई हमदम नहीं है।
किसी की ज़िन्दगी क़ायम नहीं है,
मगर जो आज है हरदम नहीं है।
नागेंद्र नाथ गुप्ता - ठाणे, मुंबई (महाराष्ट्र)