दोषी तेरे मौन अधर - कविता - लालता प्रसाद

दोषी तेरे मौन अधर,
जो तेरी कहानी कह ना पाए।

सुनने को ये कर्ण है व्याकुल,
सुने बिना जो रह ना पाए।
नैनो में नींदे जगती है,
सपनों में भी जा न पाए।

हर दिन हर क्षण 
दम तोड़ रही हैं,
छोटी-छोटी अभिलाषाएँ।

बीते कल की वो काली,
यादों की घनघोर घटाएँ।
ह्रदय झंझोरा करती है,
अँखियों से है नीर बहाए।

दोषी तेरे मौन अधर,
जो तेरी कहानी कह ना पाए।

सुनने को ये कर्ण है व्याकुल,
कुछ सुने बिना जो रह ना पाए।

लालता प्रसाद - काकोरी, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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