क़सम तुम्हे इस मिट्टी की,
मिट्टी के दीप जलाना।
तिमिर मिटेगा जब दीवाली,
में मिट्टी के दीप जलेंगे।
और तभी चहुँओर चमन में,
मुस्कुराहट के फूल खिलेंगे।
चौदह वर्ष काट वन जीवन,
राम अयोध्या आए।
अवध वासियों ने ख़ुशियों में,
लाखों दीप जलाए।
तुम भी रीति-रिवाजों से ही,
अब दीपावाली मनाना।
क़सम तुम्हे इस मिट्टी की,
मिट्टी के दीप जलाना।
घर द्वारे आँगन जा पहुँचें,
ज्यों दिनमान ढले।
नाम भारती के पुत्रों के,
पहला दीप जले।
उनको नमन देश हित जिसने,
सीखा मर मिट जाना।
वीर शहीदों के घर जाकर,
यह त्योहार मनाना।
क़सम तुम्हें इस मिट्टी की,
मिट्टी के दीप जलाना।
भारत की माटी है चंदन,
वो उर से ख़ुशबू देती है।
मिट्टी के दीपक की ज्योति,
तन-मन पावन कर देती है।
ग़रीब से दीप ख़रीद के,
उसको ख़ुशियाँ दे जाना।
अपना घर भी रौशन करने,
दुआ के दीप साथ ले आना।
क़सम तुम्हें इस मिट्टी की,
मिट्टी के दीप जलाना॥
अंशू छौंकर 'अवनि' - आगरा (उत्तर प्रदेश)